मंगलनाथ मंदिर , उज्जैन

मंगलनाथ मंदिर , उज्जैन

मंगलनाथ मंदिर :- 

 

मध्य प्रदेश के उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर स्थित पवित्र मंगलनाथ मंदिर, मोक्षदायिनी माना जाता है और प्रतिदिन सैकड़ों भक्त यहाँ दर्शन के लिए आते हैं। मंगलनाथ मंदिर, उज्जैन शहर के सबसे सक्रिय मंदिरों में से एक है और मत्स्य पुराण के अनुसार, यह मंगल ग्रह का जन्मस्थान है। मंगलनाथ मंदिर, उज्जैन से मंगल ग्रह के स्पष्ट दृश्य के लिए भी प्रसिद्ध है।

पुराणों में मंगल को पृथ्वी की संतान बताया गया है। दूसरे शब्दों में, मंगल एक ऐसा ग्रह है जो पृथ्वी से विकसित हुआ है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव के पिघलने से मंगल ग्रह का निर्माण हुआ। "धर्मगुरु पुलकित शास्त्री" के अनुसार , "उग्र" नाम मंगल ग्रह के प्राकृतिक नाम को दर्शाता है। ज्योतिष बारह राशियों, ग्रहों, नक्षत्रों आदि पर आधारित है। माना जाता है कि उदय को मंगल ग्रह का सम्मान प्राप्त है। क्षिप्रा नदी के तट पर मंगलनाथ का मंदिर है। दुनिया का भौगोलिक केंद्र वह स्थान है जहाँ पवित्र नगरी उज्जैन स्थित है। और उज्जैन प्रसिद्ध कर्क रेखा के किनारे स्थित है। मंगलनाथ मंदिर उज्जैन में एक पूजनीय पवित्र स्थल है जो भगवान शिव को समर्पित है। 

धर्मिक महत्व : - 

यह मंदिर मध्य प्रदेश की धार्मिक राजधानी उज्जैन में स्थित है। पुराणों के अनुसार उज्जैन नगरी को मंगल की जननी कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति जिनकी कुंडली में मंगल भारी रहता है, वे अपने अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए यहाँ पूजा-पाठ करवाने आते हैं। यूँ तो देश में मंगल भगवान के कई मंदिर हैं, लेकिन उज्जैन इनका जन्मस्थान होने के कारण यहाँ की पूजा को खास महत्व दिया जाता है।

कहा जाता है कि यह मंदिर सदियों पुराना है। सिंधिया राजघराने में इसका पुनर्निर्माण करवाया गया था। उज्जैन शहर को भगवान महाकाल की नगरी कहा जाता है, इसलिए यहाँ मंगलनाथ भगवान की शिवरूपी प्रतिमा का पूजन किया जाता है। हर मंगलवार के दिन इस मंदिर में श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है।

मंगल ग्रह के जन्म की कथा :-

अंधकासुर नामक दैत्य को शिवजी ने वरदान दिया था कि उसके रक्त से सैकड़ों दैत्य जन्म लेंगे। वरदान के बाद इस दैत्य ने अवंतिका में तबाही मचा दी। तब दीन-दुखियों ने शिवजी से प्रार्थना की। भक्तों के संकट दूर करने के लिए स्वयं शंभु ने अंधकासुर से युद्ध किया। दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ। शिवजी का पसीना बहने लगा। रुद्र के पसीने की बूँद की गर्मी से उज्जैन की धरती फटकर दो भागों में विभक्त हो गई और मंगल ग्रह का जन्म हुआ। शिवजी ने दैत्य का संहार किया और उसकी रक्त की बूँदों को नवउत्पन्न मंगल ग्रह ने अपने अंदर समा लिया। कहते हैं इसलिए ही मंगल की धरती लाल रंग की है। (स्कंध पुराण के अवंतिका खंड में इसका सम्पूर्ण संकलन  किया गया है l)

मंदिर में हर मंगलवार के दिन भक्तों का ताँता लगा रहता है। लोगों का मानना है कि इस मंदिर में ग्रह शांति करवाने के बाद मंगल ग्रहदोष खत्म हो जाता है। ऐसे व्यक्ति जिनकी कुंडली में चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वादश भाव में मंगल होता है, वे मंगल शांति के लिए विशेष पूजा अर्चना करवाते हैं।

मार्च में आने वाली अंगारक चतुर्थी के दिन मंगलनाथ में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन यहाँ विशेष यज्ञ-हवन किए जाते हैं। इस समय मंगल ग्रह की शांति के लिए लोग दूर-दूर से उज्जैन आते हैं। यहाँ होने वाली भात पूजा को भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। मंगल ग्रह को मूलतः मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी माना जाता है।

मंदिर में सुबह छह बजे से मंगल आरती शुरू हो जाती है। आरती के तुरंत बाद मंदिर परिसर के आसपास तोते मँडराने लगते हैं। जब तक उन्हें प्रसाद के दाने नहीं मिल जाते, वे यहीं मँडराते रहते हैं। यहाँ के पुजारी निरंजन भारती बताते हैं कि यदि हम प्रसाद के दाने डालने में कुछ देर कर दें, तो ये पंछी शोर मचाने लगते हैं। लोगों का विश्वास है कि पंछियों के रूप में मंगलनाथ स्वयं प्रसाद खाने आते हैं। मंगलनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना करने से कुंडली में उग्ररूप धारण किया हुआ मंगल शांत हो जाता है। इसी धारणा के चलते हर साल हजारों नवविवाहित जोड़े, जिनकी कुंडली में मंगलदोष होता है, यहाँ पूजा-पाठ कराने आते हैं।

  "सौजन्य से" धर्मगुरु पुलकित शास्त्री , उज्जैन महाकालेश्वर 🕉️🔱 🕉️🔱 🕉️🔱

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