तेजा दशमी
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तेजा दशमी विशेष :- 2025 में तेजा दशमी का त्यौहार 2, सितंबर, मंगलवार को मनाया जायेगा l
तेजा दशमी एक हिंदू त्यौहार है जो भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। यह त्यौहार राजस्थान और मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में लोक देवता तेजाजी के बलिदान और वचनबद्धता को याद करने के लिए मनाया जाता है। तेजाजी को भगवान शिव का अवतार माना जाता है और उनकी पूजा सर्पदंश से बचाने और अच्छे स्वास्थ्य के लिए की जाती है। इस दिन तेजाजी के मंदिरों में जाकर भक्त पूजा-अर्चना करते हैं, और उनकी याद में मेलों का आयोजन किया जाता है।
तेजाजी या वीर तेजाजी एक राजस्थानी लोक देवता हैं। उन्हें शिव के प्रमुख ग्यारह अवतारों में से एक माना जाता है और राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश और हरियाणा आदि राज्यों में देवता के रूप में पूजा जाता है।
मानव विज्ञानी कहते हैं कि तेजाजी एक नायक है जिन्होने जाति व्यवस्था का विरोध किया l
तेजाजी का जन्म :-
विक्रम संवत 1130 माघ सुदी शुक्ल पक्ष चौदस अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 29 जनवरी 1074 को श्री वीर तेजाजी महाराज का जन्म दिवस मनाया जाता है उनके पिता राजस्थान में नागौर जिले के खरनाल के मुखिया तहाड जी थे। उनकी माता का नाम रामकंवरी था। तेजाजी के माता और पिता भगवान शिव के उपासक थे। माना जाता है कि माता राम कंवरी को नाग-देवता के आशीर्वाद से पुत्र की प्राप्ति हुई थी। जन्म के समय तेजाजी की आभा इतनी मजबूत थी कि उन्हें तेजा बाबा नाम दिया गया था।
विवाह :-
तेजाजी का विवाह पेमल से हुआ था, रायमल जी मुथा की पुत्री थी, जो गाँव पनेर के प्रमुख थे। पेमल का जन्म बुद्ध पूर्णिमा विक्रम स॰ 1131 (1074 ई॰) को हुआ था। पेमल के साथ तेजाजी का विवाह पुष्कर में 1074 ई॰ में हुआ था जब तेजा 9 महीने के थे और पेमल 6 महीने की थी। विवाह पुष्कर पूर्णिमा के दिन पुष्कर घाट पर हुआ।
तेजाजी का मंदिर व मेला :-
तेजाजी का मुख्य मंदिर खरनाल में हैं।
प्रत्येक वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की दशवीं को तेजाजी की याद में खरनाल गाँव में भारी मेले का आयोजन होता हे जिसमे लाखों लोगों की तादात में लोग गाजे-बाजे के साथ आते हैं।
वीर तेजाजी की कथा का संक्षिप्त सार :-
ससुराल जाना और गायों की चोरी:
तेजाजी अपनी पत्नी पेमल को लेने ससुराल पनेर गए थे। वहाँ उनकी पत्नी की सहेली लाछां गुजरी के घर पर लुटेरों ने हमला किया और उसकी सारी गायें चुरा लीं।
नाग देवता से वचन:
लाछां गुजरी की प्रार्थना पर तेजाजी गायों को छुड़ाने के लिए निकल पड़े। रास्ते में एक नाग देवता ने उन्हें डसना चाहा, तो तेजाजी ने वचन दिया कि वे गायों को छुड़ाने के बाद लौटकर आएंगे।
गायों की रक्षा और संघर्ष:
तेजाजी ने लुटेरों का पीछा किया, गायों को उनसे छुड़ा लिया, और लाछां गुजरी को सुरक्षित गायें सौंप दीं।
वचन पालन और बलिदान:
गायों को बचाने के बाद तेजाजी वचन पूरा करने के लिए वापस नाग देवता के पास आए। लुटेरों से संघर्ष के कारण तेजाजी बुरी तरह घायल हो चुके थे। उन्होंने नाग देवता से कहा कि जब तक शरीर पर घाव है, तब तक वे उन्हें नहीं डस सकते। इस पर तेजाजी ने अपनी जीभ आगे कर दी, और नाग देवता ने उनकी जीभ पर डस लिया।
तेजाजी लोक देवता बने:
वचन पालन और गौरक्षा के प्रति अपनी अटूट निष्ठा के कारण वीर तेजाजी को लोक देवता के रूप में पूजा जाता है। भाद्रपद शुक्ल दशमी को उनका जन्मोत्सव 'तेज दशमी' के रूप में मनाया जाता है।